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Train Wheels के शेप के पीछे की इंटरेस्टिंग इंजीनियरिंग

ट्रेन के व्हील्स पूरी तरह से सिलेंडर कल नहीं होते हैं बल्कि थोड़े से कॉनिकल होते हैं। हमारे हिसाब से यह कॉनिकल शेप एक इंजीनियरिंग मार्बल है, जिससे दो चीजें हासिल होती हैं: पहला, यह ट्रेन के कोर्स को सेंटर की तरफ करेक्ट करता है और दूसरा, ट्रेन को डिफरेंशियल एक्शन अचीव करने में मदद करता है।

पहली अंप्प कप्स के साथ एक सिंपल एक्सपेरिमेंट करते हैं। जब मैं इन चिपके हुए पेपर कप्स के सेट को एक ट्रैक पर मूव करता हूं तो आप देख सकते हैं कि यह परफेक्टली स्ट्रेट मूव कर रहे हैं। अगर मैं शुरुआत में कप को हल्का सा टिल्ट भी देना चाहूं, फिर भी यह मैनेज कर पा रहे हैं।

लेकिन इस सेट के बारे में क्या? यह अपोजिट तरीके से चिपकाए गए हैं। जब मैं इन कप्स को उसी ट्रैक पर रोल करता हूं तो यह फेल हो जाते हैं। रेलवे व्हील्स इसी तरीके के कॉनिकल शेप को यूज करते हैं। इस एंगल की वजह से व्हील्स कभी भी ट्रैक से उतर नहीं सकते। लेकिन सवाल यह है कि ऐसा क्यों होता है?

यह कॉनिकल अरेंजमेंट एक सेल्फ सेंटर्ड फोर्स प्रोड्यूस करता है। इसे समझने के लिए हमें व्हील्स पर लगने वाले फोर्सेस को देखना पड़ेगा। स्ट्रेट ट्रैक मूवमेंट के दौरान व्हील्स पर लगने वाले मेन फोर्सेस यहां पर दिखाए गए हैं। रिएक्शन फोर्सेस हमेशा कॉनिकल सरफेस से परपेंडिकुलर होंगे। जब व्हील्स सेंटर्ड होते हैं तो इन फोर्सेस के हॉरिजॉन्टल कंपोनेंट्स एक दूसरे को कैंसिल कर देते हैं।

अब मान लीजिए कि किसी वजह से व्हील राइट की तरफ मूव हो गए हैं। जब ट्रेन के व्हील्स एक्सेस पर चल रहे होते हैं तो एक इंटरेस्टिंग चीज होती है — क्या आपने नोटिस किया? इस विजुअल से यह क्लियर है कि जैसे दिखाया गया है, बिल्कुल वैसे ही पूरा ट्रेन व्हील से टिल्ट हो जाता है। इस टिल्ट के साथ नॉर्मल फोर्सेस भी टिल्ट हो जाते हैं। अगर आप इस कंडीशन में फोर्सेस को एनालाइज करेंगे तो आप देखेंगे कि नेट फोर्स लेफ्ट डायरेक्शन में होगा। यह फोर्स व्हील्स को ऑटोमेटिक सेंटर की तरफ ले आएगा।

जैसे ही व्हील्स सेंटर की तरफ आएंगे, यह सेल्फ सेंटरिंग फोर्स खत्म हो जाएगा। यह व्हील्स को सेल्फ सेंटर कराने की कितनी सिंपल लेकिन ब्रिलियंट टेक्निक है, है ना? एक्स्ट्रा सेफ्टी फीचर के तौर पर भी व्हील्स के दोनों तरफ फ्लेंजेस को फिट कर दिया जाता है। मजे के लिए मान लेते हैं कि ट्रेन के व्हील्स अपोजिट एंगल में हैं। यहां पर अगर आप राइट डिस्प्लेसमेंट के दौरान फोर्स एनालिसिस करेंगे तो आप फिर से देखेंगे कि नेट फोर्स राइट की तरफ डिवेलप होता है। इसलिए व्हील्स की इस ज्योमेट्री के लिए ट्रेन के व्हील्स हमेशा ट्रैक से बाहर हो जाएंगे।

अब चलिए व्हील्स को कॉनिकल शेप देने के दूसरे रीजन को समझते हैं। इस कॉनिकल शेप के साथ इंजीनियर्स डिफरेंशियल एक्शन अचीव कर पाए थे। मान लेते हैं कि ट्रेन को टर्न लेना है जैसे कि दिखाया गया है। यहां पर लेफ्ट व्हील को राइट व्हील की तुलना में ज्यादा डिस्टेंस ट्रेवल करना है। लेकिन अगर व्हील्स को एक कॉमन शाफ्ट के जरिए कनेक्ट किया गया हो तो ऐसा कैसे हो सकता है कि एक व्हील दूसरे व्हील से ज्यादा डिस्टेंस कवर करें?

यहां पर कॉनिकल शेप काम आता है। इसे अचीव करने के लिए जब व्हील्स को टर्न किया जाता है तो यह थोड़ा सा लेफ्ट की तरफ स्लाइड हो जाता है। अगर आप व्हील्स के कांटेक्ट पॉइंट को कंसीडर करेंगे तो लेफ्ट व्हील का रेडियस राइट व्हील से ज्यादा होता है। अगर शॉर्ट में कहें तो सेम एंगल रोटेशन के लिए लेफ्ट व्हील ज्यादा डिस्टेंस ट्रेवल करेगा और डिफरेंशियल एक्शन अचीव हो जाएगा। याद रखिए कि कोर्स में डिफरेंशियल एक्शंस अचीव करने के लिए इंजीनियर्स को व्हील्स को सेपरेट करके उन्हें अलग स्पीड्स पर टर्न करना पड़ा था। लेकिन यहां पर उन्होंने केवल को कॉनिकल शेप देकर डिफरेंशियल एक्शन अचीव कर लिया।

इंटरेस्टिंग है ना? बिल्कुल! जब भी व्हील्स लेफ्ट की तरफ स्लाइड होंगे तो जैसा कि हमने पहले देखा, ऑटोमेटिक राइट की तरफ एक फोर्स प्रोड्यूस होगा। एक कॉर्नरिंग सिचुएशन में यह फोर्स सेंट्री पेडल फोर्स सप्लाई करता है, जो टर्न लेने के लिए जरूरी होता है। इस वजह से कॉर्नरिंग के दौरान व्हील्स फिर से सेंटर की तरफ स्लाइड नहीं होंगे।

लेसिक्स में हम उन ब्रिलियंट इंजीनियर को सलूट करते हैं जिन्होंने व्हील्स को केवल हल्का सा टेपर करके दो बड़े इंजीनियरिंग गोल्स हासिल किए। वीडियो को देखने के लिए धन्यवाद — आपसे फिर मिलते हैं।