सुनामी वेव्स जो खुले सागर में बनती हैं, वो बहुत तेज स्पीड से ट्रैवल करती हैं, लेकिन इनकी स्पीड मुश्किल से महसूस होती है। अब यह वेव शोर लाइन के पास पहुंच रही है या फिर पानी की डेप्थ कम हो रही है।
हैरानी की बात यह है कि जो वेव पहले बिल्कुल हार्मलेस लग रही थी, वो अचानक बहुत ज्यादा ऊंची हो जाती है और तबाही मचाने वाली सुनामी बन जाती है। आइए, इस अजीब फिजिक्स को समझने के लिए ओशियन बेड में उतरें।
यहां एक टेक्टोनिक प्लेट दूसरी के नीचे स्लाइड करती है। अब ध्यान दीजिए अपर लेयर के बल्जिंग पर — यह मोशन कितनी देर तक ऐसे ही चलता रहेगा? अब यह स्टक वुडन पीसेस देखिए, जो इस प्रोसेस को समझाने में मदद करते हैं। हम इन्हें धीरे-धीरे टाइट करते जा रहे हैं।
लेकिन एक समय के बाद, ठीक उसी तरह जैसे इस एक्सपेरिमेंट में हुआ, ओशियन बेड्स भी अपनी सारी एक्यूमुलेटेड एनर्जी एक ही झटके में रिलीज कर देते हैं। और इसी प्रोसेस से सुनामी वेव्स बनती हैं।
अगर जादू से आप पूरे ओशन का पानी निकाल दें, तो आपको धरती की सतह के अलग-अलग हिस्से साफ दिखाई देंगे। इन्हें टेक्टॉनिक प्लेट्स कहा जाता है। धरती की सतह कई अलग-अलग टेक्टोनिक प्लेट्स से बनी होती है, जो आपस में रिलेटिव मोशन में रहती हैं। कुल मिलाकर सात मेजर टेक्टोनिक प्लेट्स होती हैं।
धरती के कोर में मौजूद मोल्टन लावा लगातार सर्कुलेट करता है और यह मूवमेंट कन्वेक्टिव हीट ट्रांसफर की वजह से होता है। यह टेक्टोनिक प्लेट्स उस मोल्टन कोर पर वैसे ही तैरती हैं जैसे बर्फ पानी पर तैरती है।
लावा के लगातार मोशन के कारण, टेक्टोनिक प्लेट्स भी धीरे-धीरे मूव करती रहती हैं। जैसे कि इस एनिमेशन में आप देख सकते हैं — दो टेक्टोनिक प्लेट्स एक-दूसरे से दूर जा रही हैं और एक रिफ्ट वैली बन रही है। ईस्ट अफ्रीकन रिफ्ट वैली इस तरह के मोशन का एक बेहतरीन एग्जांपल है।
अब इस टेक्टोनिक प्लेट मूवमेंट को देखिए। यहां प्लेट्स आपस में टकरा रही हैं। इस तरह के इंटरेक्शन से माउंटेंस, ट्रंचेस और कई बार एक्टिव वोल्केनोस भी बन सकते हैं।
इस कन्वर्जिंग मोशन का सबसे अच्छा एग्जांपल है कास्केट रेंज — नॉर्थ वेस्टर्न यूएसए। टेक्टोनिक प्लेट्स की मूवमेंट बहुत स्लो होती है — साल में सिर्फ कुछ इंचेस।
अब एक इंटरेस्टिंग ऑब्जरवेशन: अगर आप दुनिया के सारे एरियाज को मार्क करें जहां सबसे ज्यादा अर्थक्वेक्स आते हैं, तो आप पाएंगे कि यह सभी जगह वही हैं जहां दो टेक्टोनिक प्लेट्स आपस में मिलती हैं।
हां, जब दो प्लेट्स आपस में टकराती या खिसकती हैं, तो जो एनर्जी रिलीज होती है वही अर्थक्वेक्स का कारण बनती है। जब कोई अर्थक्वेक डीप ओशन में होता है, तो वह सुनामी को ट्रिगर कर सकता है।
टेक्टोनिक प्लेट की जो मूवमेंट सुनामी लाती है, वह बहुत इंटरेस्टिंग होती है — इसे सबडक्शन जोन मूवमेंट कहते हैं। हमने इससे पहले कन्वर्जिंग मूवमेंट देखा है, लेकिन इस बार यह मूवमेंट समुद्र के नीचे होता है।
इस मूवमेंट में स्ट्रेन एनर्जी धीरे-धीरे अपर टेक्टोनिक प्लेट में जमा होती रहती है। कॉन्टिनेंटल क्रस्ट ऊपर की ओर उठने लगता है और ओशियानिक प्लेट उसके नीचे सिंक हो जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ओशियानिक प्लेट ज्यादा डेंस होती है।
आप कॉन्टिनेंटल क्रस्ट में एक इंटरेस्टिंग फीचर देख सकते हैं — यह अंदर की ओर मुड़ता है, जिससे टेक्टोनिक प्लेट बाउंड्री पर बड़े-बड़े ट्रंचेस बनते हैं। अब पेसिफिक ओशियन के ओशियन फ्लोर पर बने इन सुंदर ट्रंचेस को देखिए।
लेकिन यह एनर्जी कब तक जमा होती है? कुछ सबडक्शन ज़ोंस में एनर्जी सदियों तक स्टोर रहती है। कुछ दूसरे ज़ोंस में स्ट्रेन एनर्जी धीरे-धीरे रिलीज होती है। इस तरह के स्लो-स्लिप इवेंट्स सुनामी नहीं बनाते।
लेकिन कुछ रीज़न्स में — जैसे जापान ट्रेंच और चिली-पेरू ट्रेंच — एनर्जी कुछ ही सेकंड्स में रिलीज हो जाती है। और ऐसे अर्थक्वेक से डेफिनेटली सुनामी वेव बनती है।
यह जो वेव जनरेट होती है, उसकी स्पीड 200 किमी/घंटा से ज्यादा होती है, लेकिन ओशियन में इसे पहचान पाना मुश्किल होता है क्योंकि इसकी एंप्लीट्यूड बहुत कम होती है।
सुनामी वेव्स की एंप्लीट्यूड आमतौर पर आधे मीटर से भी कम होती है, लेकिन इनकी वेवलेंथ सैकड़ों किलोमीटर तक होती है। लेकिन जैसे ही यह वेव शोर लाइन के पास पहुंचती है, कहानी बदल जाती है।
अब सवाल यह है कि पानी की गहराई कम होने का वेव पर क्या इफेक्ट पड़ता है? चलो एक वेव जनरेट करके देखते हैं इस क्वेश्चन का आंसर क्या है। नोट करो, वेव को टैंक के दूसरे एंड तक पहुंचने में कितना टाइम लगता है — 1.9 सेकंड्स।
लेकिन जब पानी की डेप्थ आधी हो जाती है, तो वेव को दूसरे एंड तक पहुंचने में ज्यादा टाइम लगता है। चलो दोनों केसेस को कंपेयर करते हैं। इसका मतलब जब पानी की डेप्थ कम होती है, तो वेव की स्पीड भी कम हो जाती है।
बिल्कुल उसी एक्सपेरिमेंट की तरह — जैसे ही वेव किनारे के पास पहुंचती है, उसकी स्पीड बहुत कम हो जाती है। इस पूरे प्रोसेस में वेव की फ्रीक्वेंसी सेम रहती है।
इसका मतलब यह है कि कम गहरे पानी में वेव को अपनी वेवलेंथ को कम करना पड़ता है। लेकिन क्योंकि टोटल एनर्जी कांस्टेंट रहती है, तो इस एनर्जी को मेंटेन करने का एक ही तरीका है: वेव की एंप्लीट्यूड को बढ़ाना।
इस फिनोमिनन को वेव शॉलिंग कहते हैं। यही रीजन है कि सुनामी वेव किनारे के पास इतनी ज्यादा बड़ी हो जाती है — एक स्लो मूविंग वेव, जिसका एंप्लीट्यूड बहुत ज्यादा हाई होता है।
आखिरकार यह वेव किनारे से टकराती है और तबाही मचा देती है।
एक बात ध्यान देने वाली है: किसी भी वेव में मैटर का कोई हॉरिजॉन्टल मूवमेंट नहीं होता। अगर आप वेव के पाथ पर कुछ बॉल्स रख दें, तो वह बस अपनी जगह पर ही हिलेंगी।
सुनामी का बनना वाकई में फिजिक्स की एक कड़वी सच्चाई है — पानी का कोई पार्टिकल आगे नहीं बढ़ता, लेकिन फिर भी कंडीशंस की वजह से वेव का एंप्लीट्यूड इतना ज्यादा बढ़ जाता है कि वो किनारे पर क्रैश कर जाती है।
हैरानी की बात यह है कि जो वेव पहले बिल्कुल हार्मलेस लग रही थी, वो अचानक बहुत ज्यादा ऊंची हो जाती है और तबाही मचाने वाली सुनामी बन जाती है। आइए, इस अजीब फिजिक्स को समझने के लिए ओशियन बेड में उतरें।
यहां एक टेक्टोनिक प्लेट दूसरी के नीचे स्लाइड करती है। अब ध्यान दीजिए अपर लेयर के बल्जिंग पर — यह मोशन कितनी देर तक ऐसे ही चलता रहेगा? अब यह स्टक वुडन पीसेस देखिए, जो इस प्रोसेस को समझाने में मदद करते हैं। हम इन्हें धीरे-धीरे टाइट करते जा रहे हैं।
लेकिन एक समय के बाद, ठीक उसी तरह जैसे इस एक्सपेरिमेंट में हुआ, ओशियन बेड्स भी अपनी सारी एक्यूमुलेटेड एनर्जी एक ही झटके में रिलीज कर देते हैं। और इसी प्रोसेस से सुनामी वेव्स बनती हैं।
अगर जादू से आप पूरे ओशन का पानी निकाल दें, तो आपको धरती की सतह के अलग-अलग हिस्से साफ दिखाई देंगे। इन्हें टेक्टॉनिक प्लेट्स कहा जाता है। धरती की सतह कई अलग-अलग टेक्टोनिक प्लेट्स से बनी होती है, जो आपस में रिलेटिव मोशन में रहती हैं। कुल मिलाकर सात मेजर टेक्टोनिक प्लेट्स होती हैं।
धरती के कोर में मौजूद मोल्टन लावा लगातार सर्कुलेट करता है और यह मूवमेंट कन्वेक्टिव हीट ट्रांसफर की वजह से होता है। यह टेक्टोनिक प्लेट्स उस मोल्टन कोर पर वैसे ही तैरती हैं जैसे बर्फ पानी पर तैरती है।
लावा के लगातार मोशन के कारण, टेक्टोनिक प्लेट्स भी धीरे-धीरे मूव करती रहती हैं। जैसे कि इस एनिमेशन में आप देख सकते हैं — दो टेक्टोनिक प्लेट्स एक-दूसरे से दूर जा रही हैं और एक रिफ्ट वैली बन रही है। ईस्ट अफ्रीकन रिफ्ट वैली इस तरह के मोशन का एक बेहतरीन एग्जांपल है।
अब इस टेक्टोनिक प्लेट मूवमेंट को देखिए। यहां प्लेट्स आपस में टकरा रही हैं। इस तरह के इंटरेक्शन से माउंटेंस, ट्रंचेस और कई बार एक्टिव वोल्केनोस भी बन सकते हैं।
इस कन्वर्जिंग मोशन का सबसे अच्छा एग्जांपल है कास्केट रेंज — नॉर्थ वेस्टर्न यूएसए। टेक्टोनिक प्लेट्स की मूवमेंट बहुत स्लो होती है — साल में सिर्फ कुछ इंचेस।
अब एक इंटरेस्टिंग ऑब्जरवेशन: अगर आप दुनिया के सारे एरियाज को मार्क करें जहां सबसे ज्यादा अर्थक्वेक्स आते हैं, तो आप पाएंगे कि यह सभी जगह वही हैं जहां दो टेक्टोनिक प्लेट्स आपस में मिलती हैं।
हां, जब दो प्लेट्स आपस में टकराती या खिसकती हैं, तो जो एनर्जी रिलीज होती है वही अर्थक्वेक्स का कारण बनती है। जब कोई अर्थक्वेक डीप ओशन में होता है, तो वह सुनामी को ट्रिगर कर सकता है।
टेक्टोनिक प्लेट की जो मूवमेंट सुनामी लाती है, वह बहुत इंटरेस्टिंग होती है — इसे सबडक्शन जोन मूवमेंट कहते हैं। हमने इससे पहले कन्वर्जिंग मूवमेंट देखा है, लेकिन इस बार यह मूवमेंट समुद्र के नीचे होता है।
इस मूवमेंट में स्ट्रेन एनर्जी धीरे-धीरे अपर टेक्टोनिक प्लेट में जमा होती रहती है। कॉन्टिनेंटल क्रस्ट ऊपर की ओर उठने लगता है और ओशियानिक प्लेट उसके नीचे सिंक हो जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ओशियानिक प्लेट ज्यादा डेंस होती है।
आप कॉन्टिनेंटल क्रस्ट में एक इंटरेस्टिंग फीचर देख सकते हैं — यह अंदर की ओर मुड़ता है, जिससे टेक्टोनिक प्लेट बाउंड्री पर बड़े-बड़े ट्रंचेस बनते हैं। अब पेसिफिक ओशियन के ओशियन फ्लोर पर बने इन सुंदर ट्रंचेस को देखिए।
लेकिन यह एनर्जी कब तक जमा होती है? कुछ सबडक्शन ज़ोंस में एनर्जी सदियों तक स्टोर रहती है। कुछ दूसरे ज़ोंस में स्ट्रेन एनर्जी धीरे-धीरे रिलीज होती है। इस तरह के स्लो-स्लिप इवेंट्स सुनामी नहीं बनाते।
लेकिन कुछ रीज़न्स में — जैसे जापान ट्रेंच और चिली-पेरू ट्रेंच — एनर्जी कुछ ही सेकंड्स में रिलीज हो जाती है। और ऐसे अर्थक्वेक से डेफिनेटली सुनामी वेव बनती है।
यह जो वेव जनरेट होती है, उसकी स्पीड 200 किमी/घंटा से ज्यादा होती है, लेकिन ओशियन में इसे पहचान पाना मुश्किल होता है क्योंकि इसकी एंप्लीट्यूड बहुत कम होती है।
सुनामी वेव्स की एंप्लीट्यूड आमतौर पर आधे मीटर से भी कम होती है, लेकिन इनकी वेवलेंथ सैकड़ों किलोमीटर तक होती है। लेकिन जैसे ही यह वेव शोर लाइन के पास पहुंचती है, कहानी बदल जाती है।
अब सवाल यह है कि पानी की गहराई कम होने का वेव पर क्या इफेक्ट पड़ता है? चलो एक वेव जनरेट करके देखते हैं इस क्वेश्चन का आंसर क्या है। नोट करो, वेव को टैंक के दूसरे एंड तक पहुंचने में कितना टाइम लगता है — 1.9 सेकंड्स।
लेकिन जब पानी की डेप्थ आधी हो जाती है, तो वेव को दूसरे एंड तक पहुंचने में ज्यादा टाइम लगता है। चलो दोनों केसेस को कंपेयर करते हैं। इसका मतलब जब पानी की डेप्थ कम होती है, तो वेव की स्पीड भी कम हो जाती है।
बिल्कुल उसी एक्सपेरिमेंट की तरह — जैसे ही वेव किनारे के पास पहुंचती है, उसकी स्पीड बहुत कम हो जाती है। इस पूरे प्रोसेस में वेव की फ्रीक्वेंसी सेम रहती है।
इसका मतलब यह है कि कम गहरे पानी में वेव को अपनी वेवलेंथ को कम करना पड़ता है। लेकिन क्योंकि टोटल एनर्जी कांस्टेंट रहती है, तो इस एनर्जी को मेंटेन करने का एक ही तरीका है: वेव की एंप्लीट्यूड को बढ़ाना।
इस फिनोमिनन को वेव शॉलिंग कहते हैं। यही रीजन है कि सुनामी वेव किनारे के पास इतनी ज्यादा बड़ी हो जाती है — एक स्लो मूविंग वेव, जिसका एंप्लीट्यूड बहुत ज्यादा हाई होता है।
आखिरकार यह वेव किनारे से टकराती है और तबाही मचा देती है।
एक बात ध्यान देने वाली है: किसी भी वेव में मैटर का कोई हॉरिजॉन्टल मूवमेंट नहीं होता। अगर आप वेव के पाथ पर कुछ बॉल्स रख दें, तो वह बस अपनी जगह पर ही हिलेंगी।
सुनामी का बनना वाकई में फिजिक्स की एक कड़वी सच्चाई है — पानी का कोई पार्टिकल आगे नहीं बढ़ता, लेकिन फिर भी कंडीशंस की वजह से वेव का एंप्लीट्यूड इतना ज्यादा बढ़ जाता है कि वो किनारे पर क्रैश कर जाती है।
एक बहुत ही मशहूर मान्यता है कि अगर आप किसी बीच पर शोर लाइन को अचानक पीछे हटते हुए देखें, तो जल्द ही एक सुनामी आने वाली हो सकती है। इस बात में सच्चाई भी है।
कभी-कभी सुनामी का ट्रफ पहले शोर लाइन तक पहुंचता है। इसका मतलब है कि आप शोर लाइन को अचानक पीछे हटते हुए देखेंगे। कुछ ही सेकंड्स बाद सुनामी का क्रस्ट शोर लाइन तक पहुंचता है।
लेकिन यह जरूरी नहीं कि हर सुनामी से पहले शोर लाइन पीछे हटे — कई बार सुनामी का क्रस्ट सबसे पहले आता है।
2004 की इंडियन ओशियन सुनामी मानव इतिहास की सबसे विनाशकारी सुनामीज़ में से एक थी। यह वेव 30 मीटर से भी ज्यादा ऊंची उठी और 3,40,000 से ज्यादा लोगों की जान ले गई।
यह सुनामी एक बड़े अंडरसी अर्थक्वेक की वजह से हुई थी, जो सुमात्रा, इंडोनेशिया के पास आया था। इस अर्थक्वेक की इंटेंसिटी बहुत ज्यादा थी — रिक्टर स्केल पर करीब 9.1 से 9.3 के बीच।
सिर्फ सुमात्रा में ही 1 लाख से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। यह अर्थक्वेक इसलिए हुआ क्योंकि इंडियन प्लेट को बर्मा प्लेट के नीचे धकेला गया, जिससे अचानक सी-फ्लोर ऊपर की ओर उठ गया।
यह भूकंप लगभग 10 मिनट तक चला — जो अब तक के सबसे लंबे रिकॉर्डेड अर्थक्वेक्स में से एक है। इसमें इतनी एनर्जी रिलीज हुई थी जितनी 23,000 हिरोशिमा एटॉमिक बम्स के बराबर होती है।
इस अचानक हुए मूवमेंट ने समुद्र के बहुत बड़े हिस्से के पानी को डिस्प्लेस कर दिया, जिससे बहुत बड़ी वेव्स बनी और ओशियन में फैल गई। कुछ जगहों पर इन वेव्स की ऊंचाई 30 मीटर्स तक थी।
यह वेव्स बहुत तेजी से मूव कर रही थीं — करीब 800 किमी प्रति घंटा की स्पीड से। एपिसेंटर के पास के कोस्टल एरियाज जैसे इंडोनेशिया कुछ ही मिनटों में हिट हो गए थे, जबकि इंडिया और अफ्रीका जैसे दूर के रीज़न्स को कई घंटों बाद इंपैक्ट महसूस हुआ।
यहां एक साइज कंपैरिजन एनिमेशन दिखाई गई है जिसमें अब तक की सबसे बड़ी सुनामीज़ को दिखाया गया है जो इंसान ने देखी है।
अंडरवॉटर अर्थक्वेक्स सुनामी की सबसे बड़ी वजह होते हैं। लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि ऐसी तीन और वजहें हैं जो सुनामी ला सकती हैं।
वोल्केनिक इरप्शन जो समुद्र के नीचे होते हैं, वह भी एक बड़ा कारण बन सकते हैं। जब कोई अंडरवॉटर वोल्केनो इरप्ट करता है, तो वह फट सकता है या कोलैप्स हो सकता है, जिससे पानी चारों तरफ धकेला जाता है और बड़ी वेव्स बनती हैं। यही वेव्स आगे चलकर सुनामी बन सकती हैं।
कभी-कभी समुद्र के अंदर या तट के पास होने वाले लैंडस्लाइड्स भी सुनामीज़ का कारण बनते हैं। अगर बड़ी मात्रा में रॉक, मड या आइस अचानक समुद्र में गिर जाए, तो यह पानी को धकेलता है और वेव्स बनती हैं।
अगर यह वेव्स जमीन तक पहुंचती हैं, तो यह बहुत खतरनाक हो सकती हैं। हालांकि यह बहुत रेयर होता है, लेकिन जब कोई बड़ा मांस समुद्र में गिरता है, तब भी सुनामी आ सकती है — जैसे कि कोई मीटियोराइट।
वजोंट डैम की सुनामी इसी तरह बनी थी — जब एक मैसिव लैंडस्लाइड पानी की सतह से टकराया था। जब कोई भारी मांस पानी में गिरता है, तो वो एक बड़ा स्प्लैश बनाता है, जो आगे चलकर बड़ी वेव्स में बदल सकता है।
लेकिन अच्छी बात यह है कि इस तरह की सुनामीज़ बहुत कम होती हैं।
2004 में जब इंडियन ओशियन सुनामी आई थी, तब उस समय इंडियन ओशियन में कोई सुनामी अर्ली वार्निंग सिस्टम मौजूद नहीं था।
2004 की यह ट्रेजडी सभी देशों के लिए एक वेकअप कॉल थी। इसके बाद डीप ओशन में बदलाव को जल्दी डिटेक्ट करने के लिए बॉयज़ लगाए गए।
ओशियन फ्लोर पर लगे प्रेशर सेंसर्स पानी के लेवल में किसी भी बदलाव को डिटेक्ट करते हैं। यह प्रेशर डाटा बॉय तक भेजा जाता है जिसमें एंटीना लगा होता है, और फिर यह डाटा सैटेलाइट को भेज दिया जाता है।
याद रखिए, 2004 की सुनामी में वेव को सुमात्रा पहुंचने में लगभग 20 मिनट लगे थे, थाईलैंड पहुंचने में 1 से 2 घंटे, और श्रीलंका व इंडिया पहुंचने में 2 से 3 घंटे।
अगर DART बॉय सुनामी वेव के पहुंचने से पहले जानकारी भेज दे, तो अथॉरिटीज लोगों को समय पर इवैकुएट कर सकती हैं।
अब आता है बड़ा सवाल — क्या सुनामीज़ को रोका जा सकता है?
जापान ऐसा मानता है। 2011 के भयानक अर्थक्वेक और सुनामी के बाद, जापान ने 400 किमी लंबी और मैक्सिमम 15 मीटर ऊंची सी वॉल बनाने का फैसला किया, ताकि सुनामी इंपैक्ट को कम किया जा सके।
2011 से पहले इस वॉल की ऊंचाई 5 से 10 मीटर्स के बीच थी, और 15 मीटर ऊंची सुनामी ने इसे आसानी से पार कर लिया था।
2011 की सुनामी ने जापान के नॉर्थ ईस्टर्न कोस्ट की कई सी वॉल्स को तबाह कर दिया था, जिनमें तारो डिस्ट्रिक्ट की फेमस डबल सी वॉल्स भी शामिल थीं।
ध्यान देने वाली बात यह है कि जापान के अर्ली सुनामी वार्निंग सिस्टम ने शुरुआत में सिर्फ 3 मीटर ऊंची वेव का अनुमान लगाया था, और लोगों ने मान लिया था कि यह वेव सी वॉल को पार नहीं करेगी।
इससे एक सवाल उठता है: अगर जापान जैसी एडवांस्ड कंट्री भी सुनामी की वार्निंग को मिसजज कर सकती है, तो बाकी दुनिया की वार्निंग सिस्टम्स कितने भरोसेमंद हैं?
कभी-कभी सुनामी का ट्रफ पहले शोर लाइन तक पहुंचता है। इसका मतलब है कि आप शोर लाइन को अचानक पीछे हटते हुए देखेंगे। कुछ ही सेकंड्स बाद सुनामी का क्रस्ट शोर लाइन तक पहुंचता है।
लेकिन यह जरूरी नहीं कि हर सुनामी से पहले शोर लाइन पीछे हटे — कई बार सुनामी का क्रस्ट सबसे पहले आता है।
2004 की इंडियन ओशियन सुनामी मानव इतिहास की सबसे विनाशकारी सुनामीज़ में से एक थी। यह वेव 30 मीटर से भी ज्यादा ऊंची उठी और 3,40,000 से ज्यादा लोगों की जान ले गई।
यह सुनामी एक बड़े अंडरसी अर्थक्वेक की वजह से हुई थी, जो सुमात्रा, इंडोनेशिया के पास आया था। इस अर्थक्वेक की इंटेंसिटी बहुत ज्यादा थी — रिक्टर स्केल पर करीब 9.1 से 9.3 के बीच।
सिर्फ सुमात्रा में ही 1 लाख से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। यह अर्थक्वेक इसलिए हुआ क्योंकि इंडियन प्लेट को बर्मा प्लेट के नीचे धकेला गया, जिससे अचानक सी-फ्लोर ऊपर की ओर उठ गया।
यह भूकंप लगभग 10 मिनट तक चला — जो अब तक के सबसे लंबे रिकॉर्डेड अर्थक्वेक्स में से एक है। इसमें इतनी एनर्जी रिलीज हुई थी जितनी 23,000 हिरोशिमा एटॉमिक बम्स के बराबर होती है।
इस अचानक हुए मूवमेंट ने समुद्र के बहुत बड़े हिस्से के पानी को डिस्प्लेस कर दिया, जिससे बहुत बड़ी वेव्स बनी और ओशियन में फैल गई। कुछ जगहों पर इन वेव्स की ऊंचाई 30 मीटर्स तक थी।
यह वेव्स बहुत तेजी से मूव कर रही थीं — करीब 800 किमी प्रति घंटा की स्पीड से। एपिसेंटर के पास के कोस्टल एरियाज जैसे इंडोनेशिया कुछ ही मिनटों में हिट हो गए थे, जबकि इंडिया और अफ्रीका जैसे दूर के रीज़न्स को कई घंटों बाद इंपैक्ट महसूस हुआ।
यहां एक साइज कंपैरिजन एनिमेशन दिखाई गई है जिसमें अब तक की सबसे बड़ी सुनामीज़ को दिखाया गया है जो इंसान ने देखी है।
अंडरवॉटर अर्थक्वेक्स सुनामी की सबसे बड़ी वजह होते हैं। लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि ऐसी तीन और वजहें हैं जो सुनामी ला सकती हैं।
वोल्केनिक इरप्शन जो समुद्र के नीचे होते हैं, वह भी एक बड़ा कारण बन सकते हैं। जब कोई अंडरवॉटर वोल्केनो इरप्ट करता है, तो वह फट सकता है या कोलैप्स हो सकता है, जिससे पानी चारों तरफ धकेला जाता है और बड़ी वेव्स बनती हैं। यही वेव्स आगे चलकर सुनामी बन सकती हैं।
कभी-कभी समुद्र के अंदर या तट के पास होने वाले लैंडस्लाइड्स भी सुनामीज़ का कारण बनते हैं। अगर बड़ी मात्रा में रॉक, मड या आइस अचानक समुद्र में गिर जाए, तो यह पानी को धकेलता है और वेव्स बनती हैं।
अगर यह वेव्स जमीन तक पहुंचती हैं, तो यह बहुत खतरनाक हो सकती हैं। हालांकि यह बहुत रेयर होता है, लेकिन जब कोई बड़ा मांस समुद्र में गिरता है, तब भी सुनामी आ सकती है — जैसे कि कोई मीटियोराइट।
वजोंट डैम की सुनामी इसी तरह बनी थी — जब एक मैसिव लैंडस्लाइड पानी की सतह से टकराया था। जब कोई भारी मांस पानी में गिरता है, तो वो एक बड़ा स्प्लैश बनाता है, जो आगे चलकर बड़ी वेव्स में बदल सकता है।
लेकिन अच्छी बात यह है कि इस तरह की सुनामीज़ बहुत कम होती हैं।
2004 में जब इंडियन ओशियन सुनामी आई थी, तब उस समय इंडियन ओशियन में कोई सुनामी अर्ली वार्निंग सिस्टम मौजूद नहीं था।
2004 की यह ट्रेजडी सभी देशों के लिए एक वेकअप कॉल थी। इसके बाद डीप ओशन में बदलाव को जल्दी डिटेक्ट करने के लिए बॉयज़ लगाए गए।
ओशियन फ्लोर पर लगे प्रेशर सेंसर्स पानी के लेवल में किसी भी बदलाव को डिटेक्ट करते हैं। यह प्रेशर डाटा बॉय तक भेजा जाता है जिसमें एंटीना लगा होता है, और फिर यह डाटा सैटेलाइट को भेज दिया जाता है।
याद रखिए, 2004 की सुनामी में वेव को सुमात्रा पहुंचने में लगभग 20 मिनट लगे थे, थाईलैंड पहुंचने में 1 से 2 घंटे, और श्रीलंका व इंडिया पहुंचने में 2 से 3 घंटे।
अगर DART बॉय सुनामी वेव के पहुंचने से पहले जानकारी भेज दे, तो अथॉरिटीज लोगों को समय पर इवैकुएट कर सकती हैं।
अब आता है बड़ा सवाल — क्या सुनामीज़ को रोका जा सकता है?
जापान ऐसा मानता है। 2011 के भयानक अर्थक्वेक और सुनामी के बाद, जापान ने 400 किमी लंबी और मैक्सिमम 15 मीटर ऊंची सी वॉल बनाने का फैसला किया, ताकि सुनामी इंपैक्ट को कम किया जा सके।
2011 से पहले इस वॉल की ऊंचाई 5 से 10 मीटर्स के बीच थी, और 15 मीटर ऊंची सुनामी ने इसे आसानी से पार कर लिया था।
2011 की सुनामी ने जापान के नॉर्थ ईस्टर्न कोस्ट की कई सी वॉल्स को तबाह कर दिया था, जिनमें तारो डिस्ट्रिक्ट की फेमस डबल सी वॉल्स भी शामिल थीं।
ध्यान देने वाली बात यह है कि जापान के अर्ली सुनामी वार्निंग सिस्टम ने शुरुआत में सिर्फ 3 मीटर ऊंची वेव का अनुमान लगाया था, और लोगों ने मान लिया था कि यह वेव सी वॉल को पार नहीं करेगी।
इससे एक सवाल उठता है: अगर जापान जैसी एडवांस्ड कंट्री भी सुनामी की वार्निंग को मिसजज कर सकती है, तो बाकी दुनिया की वार्निंग सिस्टम्स कितने भरोसेमंद हैं?